Wednesday, April 30, 2025
HomeAstroमृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता? | Why...

मृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता? | Why are the Dead not left alone in Hinduism?

आप जिस Blogpost को देखने जा रहे हैं वह हिंदू पौराणिक कथाओं और लोक कथाओं से प्रेरित है। ये कहानियां हजारों साल पुराने धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं।

कृपया ध्यान दें कि हमारा उद्देश्य किसी व्यक्ति, संप्रदाय या धर्म की भावनाओं को आहत करना नहीं है। ये पौराणिक कहानियाँ केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हैं और हमें उम्मीद है कि उन्हें इसी तरह लिया जाएगा।

आज बात करते हैं ज़िंदगी के उस पड़ाव की, जहाँ लौटकर कोई नहीं आता… मृत्यु। ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन ये सच्चाई है जिससे किसी को मुक्ति नहीं मिली। और इस सच्चाई के साथ जुड़ा हुआ है एक और रिवाज, एक सवाल, जिसके बारे में आज ज़रूर बात करनी है: मृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता?

शायद आपने भी देखा होगा, या किसी कहानी में सुना होगा, जब किसी का देहांत हो जाता है, तो परिजन रात-दिन शव के पास ही रहते हैं। आखिर क्यों? क्या ये ज़रूरी है? इसके पीछे सिर्फ़ धार्मिक मान्यताएँ ही नहीं, बल्कि भावनाएँ, विश्वास और ज़िम्मेदारी का महीन ताना-बाना बुना हुआ है।

Also Read:  ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली मंत्र गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra)

पहले बात करते हैं परंपरा की। हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करना वर्जित माना जाता है। इसलिए अगर किसी का निधन शाम को होता है, तो शव को रातभर रखना पड़ता है। और अकेले? कदापि नहीं!

इसके पीछे दो तरह की मान्यताएँ प्रचलित हैं:

पहली: माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा कुछ समय तक शरीर के आसपास ही भटकती रहती है। अपने परिजनों को देखती-समझती है। ऐसे में अगर शव को अकेला छोड़ दिया जाए, तो आत्मा अकेलीपन की पीड़ा और भय महसूस कर सकती है। इसलिए परिजन उसके साथ रहकर उसे सहारा देते हैं।

दूसरी: शास्त्रों और ग्रंथों में वर्णन है कि बुरी आत्माएँ या नकारात्मक शक्तियाँ ऐसे वक्त आसपास मंडराती रहती हैं। वो निष्प्राण शरीर में प्रवेश कर सकती हैं। इसे बचाने के लिए ही कोई न कोई व्यक्ति शव के पास चौकसी करता है।

Also Read:  Thursday banana tree pooja !! बृहस्पतिवार-गुरुवार व्रत पूजन विधि ,सामग्री, नियम !! गुरुवार केला पूजा

लेकिन प्यारे दोस्तों, मैं ये सब मान्यताओं और रिवाजों के पीछे के गहरे भाव को समझती हूँ। वो है प्रेम और सम्मान। अपने प्रियजन को अंतिम समय में अकेला छोड़ने का ख़्याल भी सहन नहीं होता। हम उनके साथ रहकर ये बताना चाहते हैं कि ज़िंदगी के इस आख़िरी सफर में भी तुम अकेले नहीं हो।

शायद ये मान्यताएँ सिर्फ़ शव नहीं, बल्कि उस आत्मा की देखभाल का प्रतीक हैं, जो शरीर छोड़कर आगे की यात्रा पर निकल चुकी है। वो ज़िम्मेदारी, वो सम्मान, वो प्रेम… यही मृत्यु के बाद शव को अकेला न छोड़ने का सार है।

तो अगर कभी ऐसा मौका आए, और किसी की मृत्यु के बाद ऐसा करना संभव हो, तो उनके पास कुछ समय बिताइए। धर्मग्रंथों का पाठ करें, भजन गाएँ, उनकी ज़िंदगी की खूबसूरत यादें साझा करें। यही होगा उनके लिए सच्चा विदाई समारोह, सच्चा प्यार का उपहार।

Also Read:  किसी भी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए करें यह असरदार उपाय

आपको क्या लगता है? मृत्यु के बाद शव को अकेला छोड़ने के पीछे सिर्फ़ परंपराएँ हैं या कुछ और भी? ज़रूर बताइएगा कमेंट्स में।

Dixa Sharma
Dixa Sharmahttps://www.healthprimetips.com/
Dixa is an MBA graduate, a proud mom, and a passionate blogger for the past 9 years on this platform. She loves sharing insights on Health, Fitness, and Astrology topics. Follow her blog now for inspiring and mindful reads!
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments